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Monday, 28 October 2013

    ----मुक्तक
    पहुँच से क्षितिज दूर ही सही, छूना ख़्वाब सबका तो है
    अँधेरे की चादर बड़ी ही सही , पार उसके उजाला तो है
    नाता स्याह सफ़ेद पलों सा है , उनसे मेरी जिन्दगी का

    मुलाकात के पल छोटे ही सही ,यादों का कीमती पिटारा तो है
    ----मंजु शर्मा
    २- मुक्तक ----
    अँधेरे भी रास आते है , गम सारे ये छुपा लेता है
    दुःख भी सीने से लगा लेते है , छोटी ख़ुशी को बड़ा बना देता है
    छाँटने के लिए वक्त नहीं ,ये जीवन छोटा लगता है
     नफरत भी उसकी प्रिय  है , उस से नाता जोड़े रखता है
 ----मंजु शर्मा

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