Text selection Lock by Hindi Blog Tips

Sunday, 13 October 2013

  कविता --प्याज पुराण

    हाय रे दिल को मथ रहे थे ,महीने चार
    मेरे बजट से नदारद हो गयी प्याज चार
    मेरे एक पति और बच्चे हैं चार
    पहले दिन भर में लगती थी प्याज चार।
   
    महंगाई ने मारे थप्पड़ पहले दो फिर चार
    दिन से हफ्ते में कीं, भोजन में प्याज चार
    पति और बच्चे हर खाने पे बातें सुनाएँ चार
    तब मन ही मन मैं आँसु बहाऊं चार।
   
    एक दिन की कहानी सुन लोगों चार
    बिटिया देखने आ गए घर में मेहमान चार
    चिंतित हुई ,रसोई में थी सब्जी केवल चार
    डब्बों में भी पड़े थे मुई दाल के दाने चार।
   
    एक तारीख को लायी थी दालें और प्याज चार
    आज तारीख तीस,बचा है आटा सिर्फ कटोरी चार
    कैसे भरूँ पेट सबका सर पे बैठे मेहमान चार
    बात समधियों की थी बिरादरी में बातें बनती चार।
   
    जोर दिया बहुत तो दिमाग में आयीं युक्तियाँ  चार
    दायें-बाएं,ऊपर-नीचे अन्तरंग पड़ौसी थे मेरे चार
    बड़े बेरहम निकले जब मैंने मांगी उनसे प्याज चार
    नसीब फूटे थे मेरे,  माथे मारे अपने मैनें हाथ चार।
   
    ड्राइंग रूम में शमाँ बंधा था टोपिक थे चार
    पति और बेटों को भेजा मारकेट लाने प्याज चार
    सब्जी मंडी में खुलीं थी दुकाने मात्र चार
    एक ठेले पे नज़र आयें नग प्याज के चार।  
   
    हज़ार गुल खिले ,जब आँखें हुई प्याज से चार
    तपाक से लपके ,कदम बढ़ाये लम्बे लम्बे चार
    पति होठों में बुदबुदाये,मुश्किल से निकले शब्द चार
    कितने की देगा भाई ये  दुर्लभ प्याज चार।
   
    दुकानदर ने घूरा ,ऊपर से नीचे नज़रें दौड़ाई बार चार
    पोशाक पे हिकारत से द्रष्टि गड़ाई ,और ताने मारे चार
    कहा अपनी औकात देख कैसे लाया ख्याल प्याज के चार
    वैसे ये तो डुप्लीकेट हैं आकर्षित करने को ग्राहक चार।
   
    घंटों भटके पतिदेव जी उन्हें याद आगये पूर्वज चार
    एक बेटा भी आ गया ,  लगा के घंटे चार
    दो बेटे थे थोड़ा सयाने,ढूँढ़ निकाले प्याज के ठेले चार
    दोनों ने दो-दो प्याज खरीदीं, और उठा के रख लीं चार।
   
    दुकानदारों को कुछ खटका हुई जब ठेलो से नज़रें चार
    लिए हैं दो के पैसे और कम हैं प्याज चार
    बेटे भागे सरपट बढ़ के वहां से हाथ चार
    बौखलाए दुकानदारों की लपकली फेंक के मारी हुई प्याज चार।
   
    जंग जीत कर आये थे  दोनों की बलैयाँ लीं चार
    व्यंजनों में दो डालीं ,तारीफ सबसे सुनीं चार
    दो सगुन में दे डालीं,अरदास सुनीं सम्धियों से चार
    दहेज़ में कुछ भी न दो लेकिन प्याज देना दढी चार।
   
    रिश्ता पक्का हुआ ख़ुशी से फूली छाती इंच चार
    प्याज जुटाने को पेशानियों में सबकी बल पड़ गए चार
    जी पी एफ से लोन लिया ,कम पड़ गए लाख चार
    मदद करने को रिश्तेदारों ने भी न कीं  नज़रें चार।
   
    मीडिया अख़बारों से लगायी गुहार आये मदद को लोग चार
    बिटिया की शादी संपन्न हुई ,नदियाँ नहाये चार
    दुःख बयाँ करने बुलाई गोष्ठी, आये देश के स्तम्भ चार
    आह दिलों से निकल रही थी तरसे दर्शन को प्याज चार।
   
    छिन गए , नमक-हरी मिर्च -प्याज संग रोटी के निवाले चार
    सुख से जीना है बंधु दिन जिन्दगी के चार
    तो भूल जाओ प्याज, सुन लो महंगाई के अल्टीमेटम चार
    तरस मत खाने को प्याज लेने होंगे जनम सिर्फ चार।
    ----- मंजु शर्मा

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचनाएँ ,शुभ कामनाएं आपको। मंजुल भटनागर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ,..आपका मंजुल भटनागर जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका,... Ravi Kumar जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete
  3. पढ़ कर आपका प्याज पुराण
    मन में आये ख्याल चार
    हंसूं , रोऊँ ,मुस्काऊं
    या ठहाके लगाऊं चार ....:)

    बहुत मजेदार रचना .....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका Neena Shail जी, आपका कमेंट पढ़कर मुझे भी हँसी आने लगी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका mahfilejazbaat जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete
  5. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका Pandey Kumar जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete
  6. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका Pandey Kumar जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।

      Delete