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Sunday, 13 October 2013

  मुक्तक ----
        पूर्णिमा का चाँद फिर आ गया आसमां में , लग गया  झिलमिल तारों का मेला
        रजनीगंधा खिल उठे फिर मन-मंदिर में  , हो गया सुवासित सांसों का रेला
        स्पर्श तेरी मतवाली चाहतों का , अरमान मचल उठे भीगी हुयी सी रात में

        चाँदनी अठखेलियाँ करे बदन से मेरे, कायनात गा उठी लिए जज्बातों का रेला
         ----मंजु शर्मा
    
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