मुक्तक ----
पूर्णिमा का चाँद फिर आ गया आसमां में , लग गया झिलमिल तारों का मेला
रजनीगंधा खिल उठे फिर मन-मंदिर में , हो गया सुवासित सांसों का रेला
स्पर्श तेरी मतवाली चाहतों का , अरमान मचल उठे भीगी हुयी सी रात में
चाँदनी अठखेलियाँ करे बदन से मेरे, कायनात गा उठी लिए जज्बातों का रेला
----मंजु शर्मा
पूर्णिमा का चाँद फिर आ गया आसमां में , लग गया झिलमिल तारों का मेला
रजनीगंधा खिल उठे फिर मन-मंदिर में , हो गया सुवासित सांसों का रेला
स्पर्श तेरी मतवाली चाहतों का , अरमान मचल उठे भीगी हुयी सी रात में
चाँदनी अठखेलियाँ करे बदन से मेरे, कायनात गा उठी लिए जज्बातों का रेला
----मंजु शर्मा
No comments:
Post a Comment