कविता ---- सफ़र
यूँ मुझे तो, आज भी याद है ,
हमारी वो पहली मुलाकात
तेरा झिझकना,सहम कर
नजरों से छूना,आहिस्ता से चूमना
मेरा शरमा कर,अपने आप
में सिमटते जाना
हमारी वो पहली मुलाकात
तेरा झिझकना,सहम कर
नजरों से छूना,आहिस्ता से चूमना
मेरा शरमा कर,अपने आप
में सिमटते जाना
वो कुछ पल थे ,सब गवाह थे
रास्ता एक अब राही दो थे
रास्ता एक अब राही दो थे
हजारों ख्वाहिशें ,कुछ तेरी कुछ मेरी
हम दोनों की हमसफ़र थीं
हम दोनों की हमसफ़र थीं
ख़्वाब तेरे कुछ और मेरे कुछ और ,
सर्वथा .... जुदा जुदा थे
सर्वथा .... जुदा जुदा थे
सांसों की लय वही है
खुशबु .. और ..धड़कन बदल गयीं
रिश्ते वही , .....चेहरे वही
परस्पर नज़रें फिर गयीं
सुबहो शाम और हमराही वही थे
मगर मंजिलें बदल गयीं
मगर मंजिलें बदल गयीं
राहें वहीं,राही वहीं ,थे
दोनों की मंजिलें भटक गयीं
दोनों की मंजिलें भटक गयीं
यूँ तो अब भी हैं हमसफ़र
दरमियान ...अजनबियत पसर गयी
दरमियान ...अजनबियत पसर गयी
चल कुछ ऐसा करें अब ,......
कि रास्ता बदल लेते हैं
कि रास्ता बदल लेते हैं
जो था कभी,.....
वो वास्ता बदल लेते हैं
----मंजु शर्मा वो वास्ता बदल लेते हैं
मन के उद्गार को चित्रित करती रचना - सुन्दर
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद , श्यामल सुमन जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।
Deleteचल कुछ ऐसा करें अब.. सुन्दर भाव..
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद Vijay Jayara जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।
Deletevery nice Manju ji
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद Mahfilejazbaat जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।
Deletebhut acha manju ji........... ek is choti si kavita me puri jindgi bas gayi.........
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद Bhuvnesh Joshi जी आपका और आपके कमेंट्स का मेरे ब्लॉग पर सदैव इंतजार और स्वागत है।
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