लघुकथा ---करवाचौथ
आखिरी तारीख एक ही दिन में थी। वो फटाफट पति को नाश्ता खिला कर और एक खाने
का डिब्बा उसे दिया और दूसरा अपने बैग में रख कर बस स्टॉप की और निकल ली।
ऑफिस में ही रात हो गयी चाँद निकल आया था ,और काम भी समाप्ति की ओर था।
राधिका ने बिसलेरी की बोतल से चाँद को पानी दिया ,गणेश भगवान को स्मरण कर पति
की लम्बी आयु की प्रार्थना की और एक दुकड़ा पूरी-सब्जी की बाहर चिड़ियों के लिए रख आई
और खाना समाप्त कर पुन:काम करने लगी। सहयोगी मनोज बोला -
" अरे राधिका जी आपने यहीं पर करवाचौथ का व्रत खोल लिया ,"
"हाँ ,तो ?"
"आपने पति की आरती नहीं उतारी ,ना ही उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया ,"
" हाँ s s मुझे इन सबकी जरुरत महसूस नहीं होती , अरे जिसकी लम्बी आयु की प्रार्थना
हम औरतें भगवान् से करतीं हैं ,वो अपनी ही लम्बी आयु का आशीर्वाद कैसे दे सकता है ?
मैं तो भगवान् के ही पैर छूतीं हूँ और भगवान् से ही अपने प्रिय की अच्छी सेहत और लम्बी
उम्र की प्रार्थना करती हूँ।" मनोज को मर्दों के कमजोर और असहाय होने एहसास होने लगा
उसने निश्च्य किया की वो अपनी पत्नी से करवाचौथ के दिन तो अपने पैर नहीं छुआएगा ।
-----मंजु शर्मा
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद डॉ. हीरालाल प्रजापति जी !....
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