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Monday, 28 October 2013

मुक्तक -----
        बुझते हुए चिरागों को भी ,फितरत है समेट लेना मेरी
        आँचल की छाँव दे के , आँधियों से बचाना आदत है मेरी
        गिरते हुओं को सहारा दे सकूँ , इतनी शक्ति दे दो मुझको
        जीत जाऊं सदा लड़ अंधेरों से, बस इतनी इल्तजा है मेरी
           ---मंजु शर्मा

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