मुक्तक -----
बुझते हुए चिरागों को भी ,फितरत है समेट लेना मेरी
बुझते हुए चिरागों को भी ,फितरत है समेट लेना मेरी
आँचल की छाँव दे के , आँधियों से बचाना आदत है मेरी
गिरते हुओं को सहारा दे सकूँ , इतनी शक्ति दे दो मुझको
जीत जाऊं सदा लड़ अंधेरों से, बस इतनी इल्तजा है मेरी
---मंजु शर्मा
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