मुक्तक -----
चाँद ने बादलों का घूँघट खोला ,चाँदनी खिलखिलाने लगी
निशा ने बोझिल पलकें मूँदीं ,रविकिरण अम्बर-पनघट भिगोने लगीं
निशा ने बोझिल पलकें मूँदीं ,रविकिरण अम्बर-पनघट भिगोने लगीं
समीर ने ली मादक अंगड़ाई …,पंछियों ने मिलायी मीठी तान
अलसायी कलियाँ जो मुस्कुरायीं, सुप्त धरा खिलखिलाने लगीं
----मंजु शर्मा
No comments:
Post a Comment