लघुकथा -- शर्मिंदा
छोटी -छोटी लगभग सात -आठ बरस की दो बच्चियां आयीं और डोरबेल दबायी ,
मि.सिंह ने दरवाजा खोलकर उन बच्चियों देखा -" कहो बच्चों क्या चाहिए "
छोटी -छोटी लगभग सात -आठ बरस की दो बच्चियां आयीं और डोरबेल दबायी ,
मि.सिंह ने दरवाजा खोलकर उन बच्चियों देखा -" कहो बच्चों क्या चाहिए "
" अंकल हम स्कूल की तरफ से लड़कियों की मदद के लिए बनी संस्था के लिए
डोनेशन लेने के लिए आयीं है " , हूँ मि.सिंह ने उनसे पेपर लेकर देखे और उन्हें
अन्दर आकर बैठने के लिए कहा । भीतर की तरफ चले गए , वे पैसे लेकर आये
बच्चियों को बाहर ही खड़ा देखा, पैसे देकर पेपर पे साईन करते हुए स्नेह से कहा -
" अरे बच्चों तुम लोग अन्दर आकर नहीं बैठे, बहुत गर्मी है पानी पियोगी ?"-
"नो नो दादा जी , हम किसी के भी घर में अन्दर अकेली नहीं जातीं " ,
" क्यों बेटा "
" दादा जी मम्मी ने मना किया हुआ है "
" वो क्यों भला "
" आजकल रेप बहुत होने लगे है ना " बच्चियों ने तपाक से कहा ,अवाक् रह गए
मि.सिंह मानो समस्त मर्द जात को छोटी बच्चियों ने नंगा कर दिया हो,
डोनेशन लेने के लिए आयीं है " , हूँ मि.सिंह ने उनसे पेपर लेकर देखे और उन्हें
अन्दर आकर बैठने के लिए कहा । भीतर की तरफ चले गए , वे पैसे लेकर आये
बच्चियों को बाहर ही खड़ा देखा, पैसे देकर पेपर पे साईन करते हुए स्नेह से कहा -
" अरे बच्चों तुम लोग अन्दर आकर नहीं बैठे, बहुत गर्मी है पानी पियोगी ?"-
"नो नो दादा जी , हम किसी के भी घर में अन्दर अकेली नहीं जातीं " ,
" क्यों बेटा "
" दादा जी मम्मी ने मना किया हुआ है "
" वो क्यों भला "
" आजकल रेप बहुत होने लगे है ना " बच्चियों ने तपाक से कहा ,अवाक् रह गए
मि.सिंह मानो समस्त मर्द जात को छोटी बच्चियों ने नंगा कर दिया हो,
" थैंक्यू दादा जी " कह कर वे जल्दी से चलती बनी और मि.सिंह शर्मिंदगी और
अपराधबोध के तले दबे बुत बने खड़े रह गये।
----मंजु शर्मा अपराधबोध के तले दबे बुत बने खड़े रह गये।
मंजु जी
ReplyDeleteआपके ब्लाग की बहुत सी रचनायें पढी । सभी रचनाएं , चाहे वह लघु कथायें हों या कवितायें , जितनी भी मैंने अब तक पढी हैं , संदेशपरक हैं और जिंदगी से जुडे पहलुओं को जीवंत करती हैं और जहाँ आवश्यक हो वहाँ उनसे जनित समस्याओं का समाधान देने का प्रयास भी करती हैं। भाव पक्ष बहुत सशक्त है , बात सीधे दिल को छूती है । ई्श्वर करे आप लेखन में यूं ही नई उंचाइयाँ हासिल करती रहें और साहित्य सेवा के माध्यम से समाज सेवा करती रहें । मेरी शुभकामनायें ।
ओंम प्रकाश नौटियाल
आदरणीय ओंम प्रकाश नौटियाल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत ही सुन्दर वर्णन है । वर्तमान मे हो रही घट्नाओ का असर किस म्कदर हावी हो गया है। बहुत ही अच्छा लिखा है - अभिनन्दन ।
ReplyDeleteआदरणीय Susheel Guru जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deletebahut hi accha likha hai aapne..sundar vichaar hai aapke.
ReplyDeleteआदरणीय Richa Sharma जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Deletehmmm real thought its very nice
ReplyDeleteआदरणीय Bhuvnesh Joshi जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद susheel guru
ReplyDeleteजी !....