स्याह-सफ़ेद पल - Manju Sharma
Friday, 3 January 2014
मुक्तक ---
दूर बैठ कर पत्थर फेंक शीशे तोड़ते रहे तो क्या हुआ
बुनी हुयी चादर में पैर फंसा फाड़ते रहे तो क्या हुआ
पास रहकर फँस के जख्मी हो कर जीत कर तो देखो
बिना लड़े सर झुका के आराम हासिल किया तो क्या हुआ
---मँजु शर्मा
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