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Friday, 3 January 2014


 बाल कविता ---
  पच्चीस दिसंबर की थी वो बात
  साल की थी वो सबसे लम्बी सर्द रात
  माँ मैरी भटकते हुए पहुंची घुड़साल में
  यीशू को जनम दिया जब उस रात में
  रात आयी लग गया तारों का मेला
  चाँद भी आ गया तभी खिलखिलाता
  बादलों पे सवार आया एक रथ निराला  रथ में जुते हुए थे अश्व सात
  रथ में था एक बूढ़ा फरिश्ता
  पीठ पे थीं उसके कई पोटलियाँ 
  चाँद ने आसमान में बिखेरी चांदनी
  बादलों ने बर्फ उलीची भर भर हाथ
  फरिस्ते ने जो  खींची रास
  रथ हुआ किरणों पे सवार
  पार करके फरिश्ता परीलोक ,देवलोक
  पहुँचा नगरी नगरी द्वार द्वार
  बच्चे बड़े सब खड़े हुए थे पलके बिछाये
   फ़रिश्ते ने खोल पोटलियां बांटें उपहार
   मैं करूँ प्रार्थना भगवान् के फ़रिश्ते से
   सबको मिले जिसकी थी जो कामनाएं
    -----मँजु शर्मा

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