मुक्तक ---
मुझे बाहर के नहीं ,तुम्हारे अंतस में छाये अंधेरों से डर लगता है
मुझे अपने नहीं , तुम्हारे हौसला खो जाने का डर लगता है
जिंदगी की जंग अपने से आँख मूंद कर जीत नहीं सकता नहीं कोई
मुझे अपने को नहीं , तुम्हारे नासमझ कर हार जाने का डर लगता
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ----
फूलों सा जीवन किसका होता है ? बिखरी पंखुड़ियाँ कोई भी शाख नहीं लगाती
सब खुशियां किसको मिलती हैं ? गुज़रा समय तकदीर भी नहीं लौटाती
देख देख दुनियाँ की खुशहाली, जलने वालों , कर तदबीर जिंदगी अपनी संवारों
बिना खुद्दारी इज्जत किसको मिलती है ? बिना जतन साँस भी नहीं आती
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
पुरखें आसमां से देख जमीं पर ,सोचते होंगें अकुला कर
शहीद आसमां से देख जमीं पर , व्यथित होंगें अकुला कर
जिस वतन पर मर मिटे थे , कहाँ वो गौरवमय सिरमौर जगत का
पुनरोद्धार करने कौन अवतरित हो जमीं पर , पूछते होंगें अकुला कर
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
मोहब्बतें किताबों से की होती , तो रुसवा ना हुये होते
वफाई पुस्तकों से की होती , तो चोट दिल पे ना खाये होते
निस्वार्थ पथप्रदर्शक अंतरंग साथी पुस्तकों से बढ़कर कोई नहीं
तलाश उलझनों की "गीता "में की होती ,तो बेखुदी में ना खोये होते
---मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
पाँव हैं छोटे सड़कें हैं खोटी , दौड़ने को दिल चाह्ता है
पंख हैं छोटे मंजिल है दूर , उड़ने को दिल चाह्ता है
जानते हैं हम ख़्वाबों में बसे मात्र मरिचिका हो तुम
आस है छोटी तमन्ना है बड़ी ,तुम्हें पाने को दिल चाह्ता है
-----मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
सदियों से जकड़े हुए हैं अन्धविश्वासों की बेड़ियों में
पीढ़ियों से जकड़े हुए है जाति-धर्मों की जंजीरों में
सुशिक्षा,तर्क वितर्क खोल ज्ञान चक्षु, क्रांति नयी लाएग
उम्मीदों से लबरेज़ हुए हैं ,इंसानियत निखरेगी नये ज़माने में
-----मँजु शर्मा
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मुझे बाहर के नहीं ,तुम्हारे अंतस में छाये अंधेरों से डर लगता है
मुझे अपने नहीं , तुम्हारे हौसला खो जाने का डर लगता है
जिंदगी की जंग अपने से आँख मूंद कर जीत नहीं सकता नहीं कोई
मुझे अपने को नहीं , तुम्हारे नासमझ कर हार जाने का डर लगता
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ----
फूलों सा जीवन किसका होता है ? बिखरी पंखुड़ियाँ कोई भी शाख नहीं लगाती
सब खुशियां किसको मिलती हैं ? गुज़रा समय तकदीर भी नहीं लौटाती
देख देख दुनियाँ की खुशहाली, जलने वालों , कर तदबीर जिंदगी अपनी संवारों
बिना खुद्दारी इज्जत किसको मिलती है ? बिना जतन साँस भी नहीं आती
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
पुरखें आसमां से देख जमीं पर ,सोचते होंगें अकुला कर
शहीद आसमां से देख जमीं पर , व्यथित होंगें अकुला कर
जिस वतन पर मर मिटे थे , कहाँ वो गौरवमय सिरमौर जगत का
पुनरोद्धार करने कौन अवतरित हो जमीं पर , पूछते होंगें अकुला कर
----मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
मोहब्बतें किताबों से की होती , तो रुसवा ना हुये होते
वफाई पुस्तकों से की होती , तो चोट दिल पे ना खाये होते
निस्वार्थ पथप्रदर्शक अंतरंग साथी पुस्तकों से बढ़कर कोई नहीं
तलाश उलझनों की "गीता "में की होती ,तो बेखुदी में ना खोये होते
---मँजु शर्मा
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मुक्तक ---
पाँव हैं छोटे सड़कें हैं खोटी , दौड़ने को दिल चाह्ता है
पंख हैं छोटे मंजिल है दूर , उड़ने को दिल चाह्ता है
जानते हैं हम ख़्वाबों में बसे मात्र मरिचिका हो तुम
आस है छोटी तमन्ना है बड़ी ,तुम्हें पाने को दिल चाह्ता है
-----मँजु शर्मा
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सदियों से जकड़े हुए हैं अन्धविश्वासों की बेड़ियों में
पीढ़ियों से जकड़े हुए है जाति-धर्मों की जंजीरों में
सुशिक्षा,तर्क वितर्क खोल ज्ञान चक्षु, क्रांति नयी लाएग
उम्मीदों से लबरेज़ हुए हैं ,इंसानियत निखरेगी नये ज़माने में
-----मँजु शर्मा
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