बाल कविता --- खिचड़ी या केक
गुड्डी हुयी अब थोड़ी सयानी
उनके यहाँ नववर्ष का त्यौहार
खुशियाँ लाता कई हज़ार
अबके तारीख चौदह जनवरी
गुड्डी हो गयी दसवर्ष की
मम्मी बैठी परम्परागत बनाने
तिल-गुड़ की खस्ता गज्जक
मूँगफली की करारी चिक्की
और मिला दाल-चावल खिचड़ी
गुड्डी हुयी अब थोड़ी सयानी
हठ कर बैठी चॉकलेट केक
मम्मी बंधी हई थी परम्परा में
ठन गयी मम्मी और गुड्डी में
माहौल हुआ घर का गमगीन
उदास पड़ी थीं पतंगें रंगीन
पापा भैया देख रहे थे तमाशा
दादी ने हल सुझाया सीधा सादा
बहु परम्परा खूब निभाओ
बेटा तुम केक ले आओ
मकर सक्रांति भी मनाई जायेगी
गुड्डी भी खुश हो जायेगी
दादी की पा के इजाजत
मम्मी -पापा ,गुड्डी भैया
लेके दादी को घेर में ,और
करने लगे ता ता थैया
---मँजु शर्मा लेके दादी को घेर में ,और
करने लगे ता ता थैया
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