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Tuesday 21 January 2014

  बाल कविता ---फेसबुकिया मम्मी

  बच्चे दिन भर खेलें कम्प्यूटर पे
  शरीर होता जाये उनका बेकार
  घड़ी घड़ी डाँट-फटकार मिले
  कोई असर पड़े ना बच्चों पे

   तब मम्मी ने एक उपाय निकाला
   चुपके चुपके कम्प्यूटर सीखा चलाना
   हटो बच्चो मैं भी कम्प्यूटर चलाऊँगी
   एक दिन मम्मी ने ये एलान किया

   हा हा हा हा बच्चों ने मजाक उड़ाया
   मम्मी पड़ी बड़ी उलझन में
   फिर करते करते गलतियाँ हुयीं सयानी
   बना अकाउंट ,करने लगीं सैर अंतर्जाल की
   
   भाने लगा बहुत उन्हें कम्प्यूटर
   लापरवाही होने लगी घर के कामों में
   मुन्ना माँगे खाना मम्मी बोले रुक जरा
   दो मिनट बस एक पोस्ट कर आती

   पापा बोलें अजी सुनती हो जा रहा हूँ ऑफिस
   मम्मी बोलें अरे ! नौ बज गये ,ओह्हो ओ
   दो मिनट रुको ना बस एक पोस्ट कर आती
   पापा की मुराद हो जाती टांय टांय फिस
   
    बच्चे ,पापा टुकुर टुकुर ताकें
    मम्मी थामे रहती दिन भर माऊस
    फेसबुक का लगा चस्का घर बार भूल
    मम्मी हो गयीं कम्प्यूटर में मशगूल
    ---मँजु शर्मा

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