सफर दिन और रात का ----
दिन भर चलते चलतेथके निढाल सूरज ने
किरणों को बटोरा
अपने आँचल में
और ज्यों ही लुढ़का
समुन्दर की गोद में
रजनी बाला पैरों में
घुँघरू कलरव के बांध
हौले हौले,छम छम करती
जब आने लगी
आबाद सब नीड़ होने लगे
तब आसमान में
चुपके से किसी ने
ढके हुए थाल से
तारों को दूर व्योम में
अनंत तक बिखेर दिया
अचंभित बाला रुक न पायी
चुन चुन कर तारों को
अपने आँचल में
झट से टाँक लिया
मुखड़े पे पड़ा घूँघट हटा
ले मादक अँगड़ाई
ज्यों रजनी बाला इतरायी
चाँद मुस्कुराया और
चांदनी से जग
सराबोर किया
त्यों दूर क्षितिज़ पे
चतुर्दिक हलचल पसरायी
तारों के मेले में
जगमग रौशनी में
हौड़ मची उसे पाने
जल ,थल और नभ में
वो भी तो थी
उत्सुक और बेसबर
स्वप्निल मनमीत वरने
वक्त यूँ ही गुज़र गया
जीत न सका कोई
उसका दिल
निराश वो होने लगी
सूरज आ गया
हो तरोताजा अम्बर में
उस से पुनः
आने का वादा कर
रजनी चली गयी सोने
ये ही है सफर
दिन रात का
निभा कर दे रहे
वे जीवन जग को
युगों युगों से अनवरत
अनवरत .... अनवरत
---मंजु शर्मा
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