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Wednesday 9 January 2013

अफ़सोस . ..दुखद .....जघन्य दामिनी कांड की सुनवाई का पहला दिन गुज़रा ही था कि ,ऐसे ही खौफनाक ,दर्दनाक कांड जिसमें " मौत की सजा प्राप्त साईनाथ अभंग नामक व्यक्ति ने 10सितम्बर 2007 को पुणे में एक घर में घुसकर गर्भवती महीला से दुष्कर्म किया और उसकी 65 वर्षीया दादी सास  की हत्या  करने के बाद उसकी बाएं हाथ की कलाई व दायें हाथ की चार ऊँगली काट दी थी "सुप्रीम कोर्ट ने  अपराधी की "मौत की सजा" को "आजीवन" में भी नहीं , "उम्रकैद "में बदल दिया है। क्योंकि अपराधी ने वह अपराध करते समय शराब पी  रखी  थी और वो नशे में था। न्यायमूर्ति श्री स्वतंत्र कुमार (अब सेवा निवृत )जी क्या आपका ये बदला हुआ फैसला जनता में यह सन्देश नहीं दे रहा है कि .."  खुले आम शराब पीना ,पीके होश खोना ,.होश खोकर कोई भी अपराध करना कानूनी दृष्टी से गुनाह ,..कोई बड़ा जुर्म नहीं है ,क्योंकि .. शराब पीनेवाले को कोई भी, कैसा भी जघन्यतम ,वीभत्स,खौफनाक अपराध करने का गारंटीयुक्त मौत की सजा से मुक्तिप्राप्ति का यह लाइसेंस तो मिल ही जाएगा...कि वो 14 वर्ष जेल में काट कर फिर उन्मुक्त जीवन जीने को स्वतंत्र होगा " न्यायमूर्ति जी आपका ये फैसला  अपराधियों के लिए सजा है या अपराधियों के लिए मुक्तिद्वार ?....पीड़ितों को इन्साफ दे रहा है या चिढ़ा रहा है?... पीड़ितों के परिजनों के दुःख को कम करेगा या कि उनमें  डर, अपमान ,अफ़सोसव आक्रोश बैठायेगा कि वे इन्साफ मांगने अदालत में क्यों गये?..स्वयं ही क्यों नहीं अपने उस हत्यारे और बलात्कारी को सजा देदी ? ...वाह न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमारजी वाह एक ही समय पर एक गर्भवती महिला  के साथ बलात्कार , दूसरी महिला का अंग-भंग ,और हत्या करने वाले को शराब के नशे का सहारा ?.. यह हमारे आधुनिक भारत देश में ही संभव है , मगर.बेहद नागवार है ..

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