बाल कविता --- कामयाब- निखट्टू
बचपन में थे
हम दोस्त तीन
एक था चंदू
एक था नंदू
और एक थे हम
हम दोस्त तीन
एक था चंदू
एक था नंदू
और एक थे हम
वे दोनों थे होशियार
हम थे निरे निखट्टू
हम थे निरे निखट्टू
मास्टर जी पाठ पढ़ाते
चंदू ध्यान से सुनता
नंदू ध्यान से सुनता
हम खर्राटे भरते
मास्टर जी चिलाते
सवालों का जवाब दे
ओये निखट्टू
हम घबरा जाते
कुछ कुछ बड़बड़ाते
हमें थोड़ा चंदू बताता
सवालों का जवाब दे
ओये निखट्टू
हम घबरा जाते
कुछ कुछ बड़बड़ाते
हमें थोड़ा चंदू बताता
थोड़ा नंदू बताता
हम जवाब परफेक्ट देते
मास्टर जी बोलते
शाबाश निखट्टू
परीक्षाओं में
चंदू लिखता फर्र फर्र
परीक्षाओं में
चंदू लिखता फर्र फर्र
नंदू लिखता फर्र फर्र
हम दीवारें ताकते
थोड़ा चंदू टिपाता
थोड़ा नंदू टिपाता
हम पास हो जाते
गुरु जी पीठ थपथपाते
वाह निखट्टू …
नौकरी लग गयी दरबार में
हम आँख-कान बंद कर
चैन की बंसी बजाते
जनता सवालों की झड़ी लगाती
जनता सवालों की झड़ी लगाती
थोड़ा चंदू जवाब दे देता
थोड़ा नंदू जवाब दे देता
थोड़ा नंदू जवाब दे देता
हम बच जाते
साथी सब जलके कहते
वाह रे निखट्टू …
चुनावी मैदान में
हम कभी कभी
हम कभी कभी
दर्शन दे ताल ठोक आते
थोड़ा चंदू रिझाता
थोड़ा नंदू रिझाता
जनता फँस जाती जाल में
हम चालू निखट्टू
हमारी कुर्सी बच जाती
जनता के सरताज
पुनः पुनः बनते
हाहाहहा। ……
दुश्मन दुनियाँ चिल्लाती
वाह री किस्मत
तेरी निखट्टू
--- मँजु शर्मा ३१-३- २०१
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