मुक्तक ---
रिश्तों पे छाई कालिमा पिघले तो ,कुछ पन्ने रंगूँ सर्द रातों मेंजज्बातों पे जमी बर्फ पिघले तो ,कुछ सपने बुना करूँ सर्द रातों में
स्याह अँधेरों में विलीन हो जाने से पहले ,आकर थाम लो मुझे
मेरी बहकी सांसों को सँवारले तो , कुछ सर्जित करूँ सर्द रातों में
----मंजु शर्मा
No comments:
Post a Comment