कविता ---मैं भावनाओं की……।
मैं भावनाओं की
बहती नदी
वेगवती निरंतर प्रवाहमान
किस्सों में ढलती
कहानियों में पलती
कविताओं में बहती
मैं भावनाओं की
बहती नदी …
नियमों के तटबंध
ना रोक सकें
मन की गतिशीलता
उसूलों कि चट्टानें
न बांध सकें
भावनाओं के प्रवाह
की निरंतरता
मैं भावनाओं की
बहती नदी
अम्बर में बिखरे
चाँद सितारे
बागों में खिलते
फूल बहुतेरे
कलरव करते पंछी
मुक्त विचरते
उपवन में प्राणी
उर में जगाते
निरन्तर भाव
मैं भावनाओं की
बहती नदी
रिमझिम रिमझिम बरसता
असमान से पानी
पीइ.. कांआ…पीइ....कांआ पुकारते
प्यासे चकोर
सुन्दर पँख फैलाये
नृत्यरत मोर
भावनाओं को
अलंकृत करते शब्दों से
शब्द कविताओं में
ढलते जाते …
बहते जाते .... बहते जाते
मैं भावनाओं की
बहती नदी
वेगवती निरन्तर प्रवाहमान
मैं भावनाओं की
बहती नदी ……
मैं भावनाओं की
बहती नदी …।
----मंजु शर्मा
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