कविता - ख्वाहिश इक अधूरी सी
मन ही मन तुम्हें
मैंने ख़त लिखा
पर कागजों पे उसे
उतार नहीं पायी।
तस्वीर तुम्हारी उकारी
ख्यालों के दर्पण में
पर नाम तुम्हें
नहीं कोई दे पायी।
अनगिनत चित्र तुम्हारे
बनाये बंद कमरे में
पर दीवार पे लगाने को
कोई चुन नहीं पायी।
आसमां से पुकारा नाम तुम्हारा
तारों ने कई बार ...
सुना .. निहारा ..देर तलक
पर तुम्हें पहचान नहीं पायी।
हजारों बार दिल ने चाहा
तुम मुझे गले लगा लो
पर तुम्हें इस दुनिया में
तलाश नहीं पायी आज तक।।
मंजु शर्मा
श्रीनगर
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