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Monday 31 March 2014

चित्र और भावनाओं के रंग ...

मन में लिये प्रश्न अनेक ,
बैठ गई  वो  लेके  टेक ,
जूते – मोजे स्कूली - ड्रेस ,
नहीं बदले थे, आज भी एक.

मन ही मन कुछ सोच रही थी
चांद – तारों को देख रही थी ,
जैसे – कुछ   पूछ  रही  थी .
मानो किसी को खोज रही थी .

मीनाक्षी श्रीवास्तव 
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बाल कविता --- चित्र और भावनाओं के रंग ...

 रात आयी और चाँद निकला
 लग गया तारों का मेला   
 मुन्नी आ बैठी खिड़की पर
 ले कर यादों का रेला   

 इन्तजार में डूबी मुन्नी
 सोच के खुश हो रही थी
 जल्दी रुपहली परी आएगी
 खूब खिलौने लाएगी

 होमवर्क उसके सँग करुँगी
 जी भर के सँग खेलूँगी
 विदा पे एक छोटा सा भैया
 परी माँ से मांग लूँगी

 बैठे बैठे मुन्नी सो गयी
 सुन्दर सपने में खो गयी
 रात भर परियों के सँग
 खेलती खेलती वो थक गयी


 दादी माँ ने आवाज लगायी
 रुपहली परी हड़बड़ाई
 झट से बोली बाय बाय
 चाँद के पास उड़ चली गयी


 मुन्नी की नींद टूट गयीं
 आँखें मलते देख रही थी
 वो भौंचक्की सी चारों ओर
 सिर दादी माँ सहला रही थी

 उठ री मुन्नी, सुन खुशखबरी
 माँ तेरी सुबह को आयेगी
सँग  अस्पताल से तेरे लिए
 छोटा सा भैया लेकर आएगी

---  मँजु शर्मा  ३१-३-२०१४

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