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Wednesday, 2 April 2014

  बाल  कविता --- स्कूल जाऊँगा जरुर
   टन टन घंटा बोला
   चपरासी ने फाटक खोला
   मन्नू गया स्कूल    मास्टर जी ने
   होमवर्क माँगा
   मन्नू कॉपी गया भूल
  मास्टर जी को
   गुस्सा आया
   मार दिया रूल
  मन्नू को भी
  गुस्सा आया
  छोड़ दिया स्कूल
  दो दिन बीते
  पापा का माथा ठनका
  मन्नू से कारण पूछा
  मन्नू रो रो बोला
  पूरी कहानी
  पापा ने पुचकारा
  गले लगा कर बोला
  सुन मेरे बेटे
  गुरु होते भगवान समान 
  देते सबको अपूर्व ज्ञान
  उनके गुस्से में छिपी
  छात्र हित की कामना
  मेरे बेटे उनसे
  कभी ना रूठना
  चलों चलें स्कूल 
 ऊँगली पकड़ पापा की
  मन्नू पहुँचा स्कूल
  कर प्रणाम मास्टर जी को   दिल से बोला सॉरी
 मास्टर जी हुए गद्द गद्द
 शाबाश कह गले लगाया
 प्रेम से उसे समझाया
लापरवाही ,आलस्य को
कभी मत आने दो पास
 पढ़ोगे लिखोगे तो
 होगे सदा कामयाब
 मन्नू ने बात
 दिल में बैठायी
 लिया प्रण
 ना करने की भूल
 टन टन घंटा बोला
 हुयी छुट्टी मन्नू बोला 
  बाय बाय स्कूल
 अभी घर चलता हूँ
 कल फिर आऊँगा जरुर
 ---मँजु शर्मा
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बाल कविता ---  हथेली पर पौधा

  एक दिन छोटू ने खाया अनार

  थूक दिए बीज चूस कर रस
  मिटटी में दब गए सारे बीज 
  यूँ ही गुजर गए हफ्ते चार
  बदला आसमान का मिजाज
  बरसे मेघ रिमझिम रिमझिम
  धूप ने प्यार से सहलायी मिट्टी
  ली अंगड़ाई अंकुर फूटे आये बाहर

  छोटू की पड़ी जब उनपे नज़र
  मम्मी से पूछे सवाल हजार
  मम्मी जांच-परख दिए जवाब
  बेटा ये पौधे कल देंगें अनार
  बच्चे गिल्ली डंडा खेल रहे थे
  अनजाने में पौधे कुचल रहे थे
  पापा दौड़े आये शोरगुल सुन कर
  समझाया बच्चों को खेल रोक कर
  अफ़सोस किया उन्होंने सॉरी बोल कर
  पौधे अधमरे थे कुछ बच हुए थे
  छोटू आया और आहिस्ता से उठाया
  ले चला उन्हें हथेली पर रख कर

  रोप के उनको सुरक्षित जगह पर
  की मम्मी पापा को प्यारी ताकीद
  देखभाल में आप सब करो मदद
  मिलेंगें अनार  इनके बड़े होने पर
 ---- मँजु शर्मा
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बाल गीत --आ गयी होली
 १---  आगयी रे आगयी होली
        आहा  रंग - रंगीली
होली
        लगा के नारा जोरों से
       
निकल पड़ी बच्चों की टोली

      
        उनके चेहरों पे थी मासूमियत
       
हाथों में गुलाल और पिचकारी
        देख के काका धवल वस्त्रधारी
        जुबान पे लाके मीठी बोली

     
  बबलू ने मारी पिचकारी
       
काका जी …बुरा ना मानना
        होली आयी है साल भर बाद
        खिलखिला के पिंकी बोली
   
        दूर खड़े थे असलम जूली
        राजू ने गुलाल लगाया
        गले लगाके पिचकारी थमाई
        बड़ी हो गयी बच्चों की टोली

        हुड़दंग करते भरी दुपहरी
        माहौल बड़ा रंगीन था
        बच्चे बूढ़े सब नर नारी
        मशगूल थे खेलने होली
       
        छुप गए सब रंगों से
        हर तरफ उठ रहा शोर
        आयी है.… आयी है होली
        बुरा ना मानो आयी है होली
      ---  मँजु शर्मा    २८-२-२०१४ 
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  बाल कविता ---
          मौसम ने ली अंगड़ाई
          सर्दी लेने लगी विदाई
          गर्म कपडें बोलके बाय
          बक्सों में धूनी रमाई
         आया माघ शुक्ल पंचमी
         धूम मचाई बसंत-पंचमी
         बिखरे रंग अनेक धरा पर
         फूल खिले कलियाँ मुस्काईं
        
         फागुन आया पीछे पीछे
         पूर्णिमा को होलिका दहन
         अगले दिन मनाते धुलेंडी
         गुलाल पिचकारी संग खेलें होली
    
         भूल कर सब भेद भाव
         हुड़दंग मचाते, बुरा ना मानते
         प्यार के रंग में रंग जाते
         मस्त रंगीली होती होली
         ---  मँजु शर्मा   २८-२-२०१४
-   बाल कविता ---  बुरा ना मानो होली है
               
             चँदा मामा चला गया
             ले तारों की बारात
             सूरज ने दी दस्तक
             बुरा न मानो होली है ....
          
             लगा के सबके रंग
             मम्मी बोली आ गयी भोर
             चारो तरफ मच गया शोर
             बुरा ना मानो होली है .......
            
             मुट्ठी भर भर उड़ाओ गुलाल
             देख रँगे पुते चेहरों को
             बच्चों खिलखिलाओ दिल खोल
             बुरा ना मानो होली है ……

             छोड़ के सब रंज
             आज तन मन लो रंग
             संग सिर्फ प्रेम रंग
             बुरा ना मानो होली है  ……

             थक गए मचाते हुड़दंग
             दावत करो गुझिया संग
             ठंडाई भी चख लो संग
             बुरा न मानो होली है  
            ----  मँजु शर्मा    १-३-२०१४
     
 बाल कविता ---  कामयाब- निखट्टू 
 बचपन में थे
 हम दोस्त तीन
 एक था चंदू
 एक था नंदू
 और एक थे हम
 वे दोनों थे होशियार 
 हम थे निरे निखट्टू
 मास्टर जी पाठ पढ़ाते
 चंदू ध्यान से सुनता
 नंदू ध्यान से सुनता
 हम खर्राटे भरते
 मास्टर जी चिलाते
 सवालों का जवाब दे
  ओये निखट्टू

 हम घबरा जाते
 कुछ कुछ बड़बड़ाते
 हमें थोड़ा चंदू बताता
 थोड़ा नंदू बताता
 हम जवाब परफेक्ट देते
 मास्टर जी बोलते
 शाबाश निखट्टू

 परीक्षाओं में
 चंदू लिखता फर्र फर्र
 नंदू लिखता फर्र फर्र
 हम दीवारें ताकते
 थोड़ा चंदू टिपाता
 थोड़ा नंदू टिपाता
 हम पास हो जाते
 गुरु जी पीठ थपथपाते
 वाह निखट्टू  …
 
 नौकरी लग गयी दरबार में
 हम आँख-कान बंद कर
 चैन की बंसी बजाते
 जनता सवालों की झड़ी लगाती 
 थोड़ा चंदू जवाब दे देता
 थोड़ा नंदू जवाब दे देता
 हम बच जाते
 साथी सब जलके कहते
 वाह रे निखट्टू …
 चुनावी मैदान में
 हम कभी कभी
 दर्शन दे ताल ठोक आते
 थोड़ा चंदू रिझाता
 थोड़ा नंदू रिझाता
 जनता फँस जाती जाल में
 हम चालू निखट्टू  

हमारी कुर्सी बच जाती
जनता के सरताज
पुनः पुनः बनते
हाहाहहा। ……
दुश्मन दुनियाँ चिल्लाती
वाह री किस्मत
तेरी निखट्टू
---  मँजु शर्मा    ३१-३- २०१
मुक्तक ---
       नव सर्जन की पीड़ा को माँ तूने बेइंतहा पीया होगा
       अशक्त जान सवाँरने निज हरपल न्योछावर किया होगा
       खुदा भी तड़प कर पछताया होगा संतान की करतूत देख
       जब वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर तेरा त्याग किया होगा
       --- मँजु शर्मा    २-४-२०१४